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पूजन विधि

गणिनाथ वंदना

महान संत, कर्मयोगी, कुलगुरू गणिनाथ। महायोगिराज, ब्रह्मचारी गोविन्द ।

शत्-शत् नमन हे जगत उद्धारक, समाज सुधारक।

दें आशीष हमें हम बढ़े सत्य मार्ग पर।

करें सेवा, परोपकार रचनात्मक संकल्प, सामूहिक सोच से निर्मित समाज का हो पुनरूद्धार।

मानवीय आदर्शों, मूल्यों की करे रक्षा, बने संवाहक।

हे महात्मा योगिराज दे ज्ञान की ऐसी दिव्य ज्योति, अंतर्मन प्रकाशमय हो।

मिटे अंधकार, बने संबल हो समप्रजन जन का कल्याण।

समृद्ध, उत्कृष्ट समाज का हो नव निर्माण। नब पीढ़ी को मिले, गौरवशाली पहचान । बने राष्ट्र का विशिष्ट अंग, स्वर्णिम हो भविष्य, सर्वत्र हो गुणगान।

जय गणिनाय, जय गोविन्द, शत् शत् नमन ।

श्री गणिनाथ स्तुति

रुद्राक्ष मालादि जटा धराय, भरमांग रागाय योगेशवराय। सिद्धाय शान्ताय गणिनाधकाय, 'ग' कार रूपाय नमो नमस्ते ।।

जहन्वी तोय नित्य मंजनाय, त्रिपुण्ड भालाय मृगाम्वराय । दण्ड धराय गणिनाथ काय 'णि' कार रूपाय नमो नमस्ते ।।

नित्याय नाधाय क्षमाप्रियाय, यज्ञाय यज्ञोपवित धराय। लोकनाथय गणिनायकाय, ना कार रूपाय नमो नमस्ते।

मलेच्छादि किल दर्प हराय, बहुचर्चिताय गोपालकाय । धर्मरक्षकाय गणिनाथकाय, 'थ' कार रूपाय नमो नमस्ते ।।

1. अर्थ :-

यज्ञ-भस्म, जटा और रूद्राक्ष की माला आदि धारण करने वाले, सिद्ध-संत शान्त स्वभाव 'ग' कार रूप योगेश्वर वावा गणिनाथ को बारम्बार नमस्कार है।

2. पवित्र गंगानदी के जल में नित्य स्नान करने वाले, मस्तक पर त्रिपुण्ड, कमर में मृग-चर्म को वस्त्र के समान धारण करने वाले, दण्डधारी 'णि' कार रूप बावा गणिनाथ को बारम्बार नमस्कार है।

3. सदैव 'एक रस' नित्य, अनाथों के नाथ, क्षेमासती के पति, शरणागत को क्षमा करने वाले नैष्टिक वैदित हवन कर्ता, यज्ञोपवित घारी, जितेन्द्रिय, लोकप्रिय 'ना' कार रूप वावा गणिनाथ को बारम्बार नमस्कार है।

4. धर्मा चरण-विरोधी, अहंकारी, आततायी, आतंकी राजा और राक्षसों मर्द-मर्दन कर्ता, गाय, धर्म, मातृभूमि तथा भक्तों के रक्षक, लोकजीव बहु-चर्चित लोक देवता 'थ' कार रूप बाबा गणिनाथ को वारम्बार नमः है।

रचयिता वासुदेव साहु वृन्दावन कॉलोनी, राँची ।

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बाबा गणिनाथ जी की आरती

आरती कीजै गणिनाथ गुसाई। मन रंजन जीवन सुखदाई ।। आरजी ०।। कंचन धार कपूर जलायो। गौ के घृत को दीप सजाये।।

फल-मेवा को भोग लगाई ॥ आरती० ।।

उज्ज्वल पुष्प अगर की बाती । कीजे आरती साँझ प्रभाती ।।

प्रेम-भक्ति की धार बहाई ॥ आरती०।।

दुग्ध धार गंगाजल सोहे, पुंगीफल ताम्बुल मन मोहे। पीत बस्त्र भक्तन तन छाई ।॥ आरती० ।।

शुक्र नेवतन शनीचर पूजा। एक देव गणिनाथ न दूजा। रविवार को अर्घ्य चढ़ाई ।। आरती०।।

पजवैया में प्रभु जी आये। पलक पॉवरे लोग बिछाये ।। मानशाह घर बजी बधाई ।॥ आरती०।।

कोई नाचत गावत कोई-कोई मुख पादोदक लेई ।। प्रभु यश भारतीय कवि गाई ।। आरती०।।

मध्यप्रदेश वासी नर-नारी। जे सेवक तिनके भव हारी।। इष्ट भक्ति श्रद्धा सुखदाई।। आरती० ।।

घर-बर सुभग कुमारी पावे। अचल सुहाग सुहागिन घ्यावे ।। विधवा लहे विराग सुसहाई ।। आरती०।।

अभ्युदय गीत

सभी लोगों का प्यारा, हमारा आज अभ्यूदय मधूर शुचि दिव्य सारा है, हमारा आज अभ्यूदय हमारे देश का प्यारा, हमारे जाति का तारा सभी लोगों से न्यारा है, हमारा आज अभ्युदय ये देता है ज्ञान की शिक्षा, बहाता प्रेम की गंगा हमारा आज अभ्यूदद्य ये करता स्वास्थ्य की रक्षा, अविधा फूट को हरता, हमारा संगठन करता, भरता ज्योति जीवन का, हमारा आज अभ्यूदय है बच्चों को भी प्यारा यह है वृद्धों का दुलारा यह जीवन-जान युवकों का, हमारा आज अभ्यूदय खिला मन बालकों का यह पूज्य हमारा है हमारा आज अभ्यूदद्य निशा का अचल ध्रुव तारा उषा का हास्य मृत्यु प्यारा ये प्राची का है अरूणोदय हमारा आज अभ्यूदय रजत सम सुभ्र है भक्ति केसरिया रंग यूवा शक्ति अरूण अनुराग की धारा हमारा आज अभ्यूदय।

अभ्युदय

(अभ्युदय ध्वज का माप 3:2 के अनुपात में होता है)।

शशि भूषण गुप्ता

महामंत्री

राँची नगर मध्यदेशीय वैश्य विकास समिति

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जय बाबा गणिनाथ गोविंद जी महाराज

पूजन सामग्री एवं विधि about

पूजन सामग्री मात्रा पूजन सामग्री मात्रा
1.कलश मिट्टी का 1 2.डक्कन 1
3.चौमूखी दीप 1 4.छोटा दीप 28
5. तील या सरसो तेल 500 ग्राम 6. शुद्ध घी 200 ग्राम
7. तील 1 किलो 8. चावल 2:50 किलों
9. धूप 1 किलो
हवन सामग्री मिक्सवाला
10. जौ 250 ग्राम 11. आम लकड़ी हवन वास्ते
12.पंचामृत के लिए दूध, दही, घी, मधू, तुलसी 13. केला का पत्ता
14. गाय का गोबर 15. कूश
16. मिट्टी प्याला 2 17. दूभ घास
18. तूलसी पत्ता 19. मिट्टी का ढक्कन 4
20. आरती के लिए छिपली 1 21. थाली, ग्लास, बाल्टी
22. उजला फूल, माला 5 पीस 23. उजला गेरूआ 2 पीस
24. पंच मेवा में किसमिस, गड़ी, छूहारा, मखाना, सौफ 25. शति माँ के लिए - साड़ी, ब्लाउज, पेटीकोट, लहठी-चूड़ी, सिंगार सामान
26. जीरा (खोईछा के लिए) 27. भाखड़ा सिंदूर 100 ग्राम
28. बिन्दी 29. कुमार दही पूजा से एक दिनपूर्व बनता है। दही जमाने केलिए दही को जोड़न नहीं डालकर उसे ताम्बें का पैसा या चम्मच रखा जाता है रात भर. में दही जमजाता है इसी को कुमार दही कहते है।
30. छाकी पिलाने - कच्चादूध 500 ग्राम गूड़, तूलसी मिलाकर दो बालक और बालिका को पिलाया जाता है। 31. जनेऊ 5 जोड़ा
32. पीला कपड़ा 2.5 मी० 33. आसनी कूस या कम्बल
34. पीला चन्दन 50 ग्राम 35. उजला चंदन 50 ग्राम
36. रोली चंदन 2 पूड़िया 37. कलावा बड़ा 1 पीस
38. कपूर 50 ग्राम 39. रूईबत्ती लम्बा 2 पैकेट
40. रूईबत्ती गोल 2 पैकेट 41. पान 25 पीस
42. गुड़ 500 ग्राम 43. सूपली 2 पीस
44. मौनी 2 पीस 45. गंगाजल
46. धान लावा 100 ग्राम 47. छोटा सुपारी 100 ग्राम
48. हल्दी गोटा 100 ग्राम 49. उबटन मशाला 1 पूड़िया
51. लौंग 10 ग्राम 52. इलायची बड़ी 10 ग्राम
53. धोती 1 पीस 54. कूर्ता 1 पीस
55. गमछा 1 पीस 56. खड़ाव 1 जोड़ा
57. पीढ़ा 1 58. झोला सफेद 1
59. बेतएक-(ढाई हाथ का ) छाता सफेद 4
Note : बृहत पूजा के लिए उपरोक्त सामग्री लगता है। घर में पूजा के लिए इसकी मात्र को कम किया जा सकता है।

पूजन में भाग लेने वाले निश्चित सदस्य और सदस्या

  • 1. पुजारी-पुजारन-पति-पत्नि
  • 5 सुहागिन औरते
  • 2 कुमार बालक और दो कुमार कन्या।
details

पूजन विधि बाबा गणिनाथ जी का

भाद्रपद माह कृष्णपक्ष जन्माष्टमी के बाद जो शनिवार होता है उसी दिन बाबा गणिनाय जी की जयन्ती मनाई जाती है। इस दिन चौदहो देवान की पूजा किया जाता है।

पूजा से एक दिन पूर्व यानि शुक्रवार को पूजा में सम्मिलित होने वाले लोगों के यहाँ आमंत्रण में स्त्रीधर च्चावल या लौंग भेजा जाता है। ये उन्हीं लोगों के यहाँ भेजा जाता है जो गणिनाथ के सेवक होते हैं।

इसके अलावा अन्य देवी-देवता, गणेश जी शंकर जी, पार्वती जी, हनुमान जी, ग्राम देवी-देनता, का भी न्योतन करते हैं।

दूसरे दिन यानि शनिवार को पूजा ब्रह्म मूहुर्त (भोर) में सूर्योदय से पहले ही शुरू होता है।

पूजा घर को धो-पोछ लिया जाता है। मंदिर के आगे कलश में जलभर कर गंगा जल डालकर, आम पल्लव रखकर उस पर चावल से भरा मिट्टी का पात्र (ढक्कन) रखकर चुमुखीदीप उसपर रखकर जला दिया जाता है। अगर कलश पर नारियल रखना चाहे तो दिपक को अलग जलाया जाता है। वही नारियल रखा जाता है। जिसमें छिलका सहीत जल वाला हो उसे पीला कपड़ा लपेट कर पीला रक्षा सूत्र से बाँध कर रखा जाता है।

बाबा के मंदिर में पीड़ा रखकर उस पर खड़ाऊँ रखा जाता है। छाता और बेंत साथ के दिवार के साथ खड़ा किया जाता है।

साथ ही उजला गेरूआ को छत से टांगकर पींड को स्पर्ष करता रहता है।

मंदिर में पाँच डाला तथा दो सुपली में प्रसाद सजाकर रखा जाता है। गोविन्द जी के लिए खड़ाऊँ, छाता बेंत मंदिर में रखा जाता है।

सफेद फूल माला से मंदिर को सजा दिया जाता है। सफेद, अर्पन (पीसा हुआ चावल) से मंदिर में जापा दिया जाता है, फिर उसमे सिन्दूर लगाया जाता है। फिर पाँच सुहागिन बाबा के सम्पूख बैठती हैं इसे मंदिर से (सुहागिणों) तक सिन्दूर पहुँचाया जाता है। एक सुहागीन इसी विधि को पाँच बार दूहराती है। सिन्दूर अर्पण करने के बाद जल से अर्पण किया जाता है।

पाँचों सुहागीन और बालिकाओं को भी सफेद फूल माला दिया जाता है। कुमार बालक को आँचल से ढंककर छाकी (दूध से भरा प्याला) पिलाया जाता है।

बाबा गणिनाथ जी के पूजन करने के बाद लाल खां के लिए अलग से मिट्टी के बर्तन में प्रसाद भर कर बाहर रखा जाता है।

सके बाद कपूर से बाबा की आरती की जाती है उसी आरती को अंत में लाल खाँ को भी दिखाया जाता है।

इसके उपरांत बाबा गणिनाथ जी के लिए हवन किया जाता है इसके बाद पूजा संपन होता है।