पूजन में भाग लेने वाले निश्चित सदस्य और सदस्या
- 1. पुजारी-पुजारन-पति-पत्नि
- 5 सुहागिन औरते
- 2 कुमार बालक और दो कुमार कन्या।

पूजन विधि बाबा गणिनाथ जी का
भाद्रपद माह कृष्णपक्ष जन्माष्टमी के बाद जो शनिवार होता है उसी दिन बाबा गणिनाय जी की जयन्ती मनाई जाती है। इस दिन चौदहो देवान की पूजा किया जाता है।
पूजा से एक दिन पूर्व यानि शुक्रवार को पूजा में सम्मिलित होने वाले लोगों के यहाँ आमंत्रण में स्त्रीधर च्चावल या लौंग भेजा जाता है। ये उन्हीं लोगों के यहाँ भेजा जाता है जो गणिनाथ के सेवक होते हैं।
इसके अलावा अन्य देवी-देवता, गणेश जी शंकर जी, पार्वती जी, हनुमान जी, ग्राम देवी-देनता, का भी न्योतन करते हैं।
दूसरे दिन यानि शनिवार को पूजा ब्रह्म मूहुर्त (भोर) में सूर्योदय से पहले ही शुरू होता है।
पूजा घर को धो-पोछ लिया जाता है। मंदिर के आगे कलश में जलभर कर गंगा जल डालकर, आम पल्लव रखकर उस पर चावल से भरा मिट्टी का पात्र (ढक्कन) रखकर चुमुखीदीप उसपर रखकर जला दिया जाता है। अगर कलश पर नारियल रखना चाहे तो दिपक को अलग जलाया जाता है। वही नारियल रखा जाता है। जिसमें छिलका सहीत जल वाला हो उसे पीला कपड़ा लपेट कर पीला रक्षा सूत्र से बाँध कर रखा जाता है।
बाबा के मंदिर में पीड़ा रखकर उस पर खड़ाऊँ रखा जाता है। छाता और बेंत साथ के दिवार के साथ खड़ा किया जाता है।
साथ ही उजला गेरूआ को छत से टांगकर पींड को स्पर्ष करता रहता है।
मंदिर में पाँच डाला तथा दो सुपली में प्रसाद सजाकर रखा जाता है। गोविन्द जी के लिए खड़ाऊँ, छाता बेंत मंदिर में रखा जाता है।
सफेद फूल माला से मंदिर को सजा दिया जाता है। सफेद, अर्पन (पीसा हुआ चावल) से मंदिर में जापा दिया जाता है, फिर उसमे सिन्दूर लगाया जाता है। फिर पाँच सुहागिन बाबा के सम्पूख बैठती हैं इसे मंदिर से (सुहागिणों) तक सिन्दूर पहुँचाया जाता है। एक सुहागीन इसी विधि को पाँच बार दूहराती है। सिन्दूर अर्पण करने के बाद जल से अर्पण किया जाता है।
पाँचों सुहागीन और बालिकाओं को भी सफेद फूल माला दिया जाता है। कुमार बालक को आँचल से ढंककर छाकी (दूध से भरा प्याला) पिलाया जाता है।
बाबा गणिनाथ जी के पूजन करने के बाद लाल खां के लिए अलग से मिट्टी के बर्तन में प्रसाद भर कर बाहर रखा जाता है।
सके बाद कपूर से बाबा की आरती की जाती है उसी आरती को अंत में लाल खाँ को भी दिखाया जाता है।
इसके उपरांत बाबा गणिनाथ जी के लिए हवन किया जाता है इसके बाद पूजा संपन होता है।